गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

क्रांति

क्रांति

थक कर बैठ गयी हर आहट
हुई आहत जब मन की बैन
अविरल अश्रु धार बहे और
 व्यथित हुया इस मन का चैन

सूरज उदित हुया था कल भी
और किया था उषा पान
बिन आहट फीका अब सूरज
नही रूचे  अब खग वृंद गान

रहने दो अब मत सहलाओ
मत इसको आवाज़ लगाओ
राख हुई अब जो चिंगारी
मत उसमे शोला भड़कायो

होगी हरियाली जब  आहट
उठेंगे धीर हो कर अधीर
नस नस में भरेगा उत्साह
जन जन होगा क्रांतिवीर

व्योम दीप की शिखा जला लूँ
छाया घोर कुहास मिटा लूँ
आहत आहट का रीता पन
क्रांति युग का उदय गान है