मूक तपस्वी
मुहं पर मौन
मन में त्रिकोण
सिर झुकाए
बैठा है आज
तीसरे कोने पर
अपलक निहारता
दोनों कोने
जिस पर
बैठे है हम -आप
और सरकार
उफ़! दोनों कोने
कितने कमज़ोर
बना ना पाए
ताल मेल
फ़ैल रहा
शंका का जाल
और मूक तपस्वी
झूल रहा उस त्रिकोण
के तीजे कोने पर
दृद संकल्प ले
कुछ करने को
मर मिटने को
ओ जनता अब
जागो जागो
अपने फ़र्ज़ -और
हक़ को पहचानो
इस मौन को
आवाज़ बनाओ
जाह्नवी का
क़र्ज़ चुकाओ