गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

khwahish

ख्वाहिश

खतों -खितावत से ना मिटती है तेरे दीदार की ख्वाहिश
जी चाहता है कि अब तुझ को  आगोश में भर लें
और पी लें तेरी इन झुकी मस्त निगाहों के प्याले
बिन छुए मय को , खुद अपने को मदहोश कर लें
वादे पे तेरे हम सब्र किये जाते हैं ऐ साकी
डरते है कि कही तू वादा फरामोश ना कर ले
सजदे में झुका देंगे  सिर अपना तेरी मोहब्बत के आगे
याँ फिर वजूद  को हम अपने फ़रोश  ही कर लें