फूल सा व्यक्तित्व
फूल सा व्यक्तित्व है उसका
करता है आकर्षित सबको
एक शूल चुबता है तुमको
तो क्या खुशबू खो देगा ?
फूल तो आखिर फूल रहे गा
शीश चढाओ या ठुकराओ
कोमलता में सर्वोपरि है
चाहे कितने भी शूल गिनाओ
तुम चाहे इनका करो ना सिंचन
यह तो महक फैलाएगा
कर लो कितना भी जीवन मंथन
ऐसा सौरभ कही ना मिल पायेगा