रविवार, 19 दिसंबर 2010

mamta ki janjeer

ममता की जंजीर

देख कर जुल्मो-सितम इस जगत   के
उठते  है  बवंडर तब इस शांत मन मे
मन का हारिल विरक्त  हो तब दूर नभ मे
 उड़ कर कही स्वयं से दूर जाना चाहता है
कैद  कर नहीं रख  पाती उसे सोने की दीवार
रोक नहीं पाती  किसी के चाहत के दीदार
बहला नहीं पाती उसे कोई  भी तक़रीर
सहला नहीं जाती किसी के  प्यार की तस्वीर
टूट जाते है सब  बंधन बस एक ही पल में
बाँध  पाती है उसे तो बस ममता की जंजीर