बुधवार, 1 दिसंबर 2010

anubhav sparsh ka

अनुभव स्पर्श का

कोलाहल चंहु और
निस्तब्ध बना  पुर जोर
मधुर शब्द मौन ना

सिहरन भरा  स्पर्श्य
मंजुल मन अवश्य
व्यक्त हई कल्पना

जागे  सोया अभिलाष
अभिनंदित उल्लास
कुहुक उठी वेदना