विरह
जब पूनम की ज्योति से धुल कर
रजनी आँचल फैलाती है
जब पवन सुरीली बाँसुरिया
तरु पल्लव से बजवाती है
प्रीत पिया के स्निग्ध स्पर्श की
चाहत को अकुलाती है
विहरन वेन गीत मिलन के
रात रात भर गाती है
ऐसे में प्रेमी विलग मन
दर्द बटोरा करते हैं
शबनम के नन्हे कतरों से ,
शोलों को ठंडा करतें हैं