शनिवार, 25 दिसंबर 2010

virh

विरह
 जब पूनम की ज्योति से धुल कर
रजनी आँचल फैलाती है
जब पवन सुरीली बाँसुरिया
तरु पल्लव से बजवाती है
 प्रीत पिया के स्निग्ध स्पर्श  की
चाहत को अकुलाती है
 विहरन वेन गीत मिलन के
रात रात भर गाती है
ऐसे में प्रेमी विलग  मन
दर्द बटोरा करते हैं
शबनम के नन्हे कतरों से   ,
 शोलों को ठंडा करतें हैं