शनिवार, 25 दिसंबर 2010

jaadaa

जाड़ा ( सर्दी का मौसम )

कितना अच्छा था वोह जाड़ा
धुंध और कोहरे से लिपटा
मद्धम हो सूरज भी सिमटा 
गर्माहट  हर पल तरसता 
दिन भर बर्फाना  ठिठुरता
रात को आग का देता भाड़ा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा

कामकाज हो जाता सारा ठप्प
चाय के साथ बस होता गपशप
लम्बे कोट पहन सडको पर
हिम से खेले सब वृद्ध युवा जन
बड़े  उत्साह का एक  नगाड़ा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा

हम भी तब थे छोटे छोटे
पहन गरम दस्ताने , मौजे
माँ की नज़र बचा कर के
चढ़ जाते घर के परकोटे
देवदार से लम्बे हो कर
छूते सूरज का चौबारा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा