दूरियां
सृजन की तूलिका ने फिर गमक की तान छेड़ दी.
विरह की वेदना ने मिलन की हर आस भेद दी
उठे जब भी कदम तुम्हारी तरफ तुमसे मिलने को
इस जग के लोगो ने इड़ा की झूठी शान घेर दी
बढे अब फांसले कुछ इस तरह दरमियाँ दोनों के
कि साथ रह कर भी प्रिया अजानी छाप बन गयी
ना समझे थे ना समझोगे तुम ऐ जहां वालो
दूरी बीच दोनों की तुम्हारी नज़र की माप बन गयी
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