मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

yakeen

यकीन

कितना मिलते थे हम रोज़ ना जाने क्या हुआ
 बिछड़  गए अचानक  ,अक्सर सोचते है कि
नाम गर कभी आएगा  जुबान पर मेरा
तो क्या संभाल लोगे जिगर अपना?
रूबरू जब कभी होगा मेरा साया तुमसे
तो कर पायगे अलग वजूद अपना?
ना बदला होगा  तेरा वोह मुझ को दामन पकड़ कर बुलाना
ना बदला होगा मेरा वोह दामन झटक कर छुड़ाना
ना बदला होगा तेरा वोह नज़र से नज़र मिलाना
ना बदला होगा मेरा वोह तुम से नज़रे बचाना 
बात बात पर चहकना , इतराना, और रूठ जाना
ना बदला होगा तेरा वोह मुझ को यूं बुलाना
बिछड़ने के बाद भी है यह मुझ को यकीं
हम तुम कही दूर नहीं, बस आस-पास है  कहीं