जग समीक्षा
यह जग भले बिसार दे
या व्यर्थ की गुहार दे
ताज सा वोह शीर्ष पर
बिठा के भी उतार दे
न रूकना तुम
न झुकना तुम
न मौन दृगों से ताक कर
हृदय से यूं सिसकना तुम
हाथ श्रम कुठार ले
वक्त की बयार ले
अपने मन को बाँध कर
बस यूं ही आगे बढ़ना तुम
सराहना नहीं है माप दंड
निज प्रयत्न की ,पुरषार्थ के
पग मंजिलो को चूमते
साक्षी है परमार्थ के