शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

nanhi kilkaari

 नन्ही किलकारी

जिस दिन था वह गर्भ समाया
सब कुछ बदला मैंने पाया
हर पल तकता आँखे मींचें
सब कुछ बोले ओंठों को भींचे
मेरी पीड़ा महसूस करे
धमनियों से रक्त हरे
अस्थि मज्जा मेरी पा कर
 दिन प्रति दिन परिपूर्ण बढे
मॉस नौ या दिन सत्तर दो सौ
ख़तम अवधि क्षण में ज्यों
व्यकुल हुआ जब हुआ पूर्ण तो
तड़प उठे जग में आने को
प्रसव वेदना झेल अथाह
बही वत्सलता तीव्र प्रवाह
अंक सजी सुंदर फुलकारी
  गूँज उठी  नन्ही किलकारी