मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

Rahiye ab aise jgh

रहिए अब ऐसी  जगह

घबरा  गया हूँ अब तेरी यादो की जकड़न से
कैसे हो पाऊँ    मुक्त  तेरे   वादों की पकड़न से
 सोचा चला जाये किसी ऐसे  गगन   में
जहा तेरी यादों  के बादल ना तैरते हों
सोचा चला जाए किसी ऐसे  धरातल पर
जहा तेरी यादों  के जाल ना फैलते हो
बन जाऊं कोई ऐसा निर्झर
जो बिना तेरे नाम के कल-कल बहता हो
हो जाऊं कोई  ऐसा साग़र
जिसमे तेरे नाम का ज्वार ना आता हो
चल कर रहूँ अब ऐसी जगह
जहां अब और कोई रहता ना हो