कृषक
माथे पर छलके नन्हे स्वेद कण
चमके जैसे सुंदर मणियाँ
धरती पर गिरते मोती बन कर
खिलते जैसे स्वर्ण बालियाँ
गेंहूं बाजरा भुट्टा चावल
लहलहाते खलिहान प्रति पल
माटी में माटी सा हो कर
कड़ी धूप में देता जीवन जल
सच है कृषक है पोषण करता
ऊँचा है मानव में दर्जा
इस धरती का पालनहार
सब लोगो की भूख को हरता
पर हाए! भाग्य है उसका खोटा
सदा सूद का बोझा ढोता
क्या कभी विचारा है हम सब ने
क्यों बेचारा किस्मत को रोता ?
माथे पर छलके नन्हे स्वेद कण
चमके जैसे सुंदर मणियाँ
धरती पर गिरते मोती बन कर
खिलते जैसे स्वर्ण बालियाँ
गेंहूं बाजरा भुट्टा चावल
लहलहाते खलिहान प्रति पल
माटी में माटी सा हो कर
कड़ी धूप में देता जीवन जल
सच है कृषक है पोषण करता
ऊँचा है मानव में दर्जा
इस धरती का पालनहार
सब लोगो की भूख को हरता
पर हाए! भाग्य है उसका खोटा
सदा सूद का बोझा ढोता
क्या कभी विचारा है हम सब ने
क्यों बेचारा किस्मत को रोता ?