शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

shushak taru

शुष्क तरु

करने को पूरी बात अधूरी
चिर प्रतीक्षित खड़ा हूँ आज
अंतस में साधे विकल साध
चिर अनंत में पड़ा हूँ आज
मूक  तपस्वी सा समाधिस्थ
ठोस  पुरातन का सूचक
अटल अडिग कठोर शुष्क सा
हरित तरु सुख का ध्योतक
सहता हर ऋतू  का परिवर्तन
देता तब भी सुख की शीत
इंतज़ार ! बस इंतज़ार है
कब लौटो गे मन के मीत