शुष्क तरु
करने को पूरी बात अधूरी
चिर प्रतीक्षित खड़ा हूँ आज
अंतस में साधे विकल साध
चिर अनंत में पड़ा हूँ आज
मूक तपस्वी सा समाधिस्थ
ठोस पुरातन का सूचक
अटल अडिग कठोर शुष्क सा
हरित तरु सुख का ध्योतक
सहता हर ऋतू का परिवर्तन
देता तब भी सुख की शीत
इंतज़ार ! बस इंतज़ार है
कब लौटो गे मन के मीत
करने को पूरी बात अधूरी
चिर प्रतीक्षित खड़ा हूँ आज
अंतस में साधे विकल साध
चिर अनंत में पड़ा हूँ आज
मूक तपस्वी सा समाधिस्थ
ठोस पुरातन का सूचक
अटल अडिग कठोर शुष्क सा
हरित तरु सुख का ध्योतक
सहता हर ऋतू का परिवर्तन
देता तब भी सुख की शीत
इंतज़ार ! बस इंतज़ार है
कब लौटो गे मन के मीत