इच्छित सपने सत्य कर जाता
पल अब तक जो बीत गया है
वह मेरा था और मेरा ही रहेगा
शंकित तम में डूबा हर कल
आशित किरणों से रौशन होगा
संध्या का गर डूबा सूरज तो
मत समझो कि प्रयत्न हीन है
काल रात्रि में जो विधु चमके
मत समझो कि बड़ा क्षीण है
देखा सपना गर मैंने उड़ने का
बिना पंख के भी उड़ा हूँ मैं
देखा सपना सागर पर चलने का
तो बिन पग के दौड़ा हूँ मैं
सपने देखा करता हूँ जगते मैं
सो जाता जग , तो मैं जग जाता
भीषम प्रतिग्य हूँ , वंशज हूँ ऐसा मैं
इच्छित सपने हरदम सत्य कर जाता
पल अब तक जो बीत गया है
वह मेरा था और मेरा ही रहेगा
शंकित तम में डूबा हर कल
आशित किरणों से रौशन होगा
संध्या का गर डूबा सूरज तो
मत समझो कि प्रयत्न हीन है
काल रात्रि में जो विधु चमके
मत समझो कि बड़ा क्षीण है
देखा सपना गर मैंने उड़ने का
बिना पंख के भी उड़ा हूँ मैं
देखा सपना सागर पर चलने का
तो बिन पग के दौड़ा हूँ मैं
सपने देखा करता हूँ जगते मैं
सो जाता जग , तो मैं जग जाता
भीषम प्रतिग्य हूँ , वंशज हूँ ऐसा मैं
इच्छित सपने हरदम सत्य कर जाता