बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

icchit sapne saty kar jaataa

इच्छित सपने सत्य कर जाता 

पल अब तक जो बीत गया है
वह मेरा था और मेरा ही रहेगा
शंकित तम में डूबा हर कल
आशित किरणों से रौशन होगा
संध्या का गर डूबा सूरज तो
मत समझो कि प्रयत्न हीन है
काल रात्रि में जो विधु चमके
मत समझो कि बड़ा क्षीण है
देखा सपना गर मैंने उड़ने का
बिना पंख के भी उड़ा हूँ मैं
देखा सपना सागर पर चलने का
तो बिन पग के दौड़ा हूँ मैं
सपने देखा करता हूँ जगते मैं
सो जाता जग , तो मैं जग जाता
भीषम प्रतिग्य हूँ , वंशज हूँ ऐसा मैं
इच्छित सपने हरदम सत्य कर जाता