सोमवार, 31 जनवरी 2011

dard ka phool

दर्द का फूल

अश्कों ने सींच दिया मेरे गम  को
अब तो चारो और हरियाली है
फूल बन कर दर्द मुस्कुराता है
  चमन की फिजा ही निराली है
बन गई   दुखों    की लाखों  क्यारियाँ
बंट गई अब इक धरा सरीखी  जिंदगी
 बोए बीज आशा के हम ने भी झूम झूम
मुश्किलों के दीमक ने चाटी  जैसे जिंदगी
बेबसी के फलसफे से  लिखी इबारतें
भाग्य को  बदलने की  कोशिशें करती है
निशित अनिश्चित के झूले में झूल कर
प्रयतन का मकरंद झोली में भरती है
खिले फूल दर्द के , संग शूल सुखों से
नस नस में गर्म रक्त दौड़े मेरे प्राण से
बीज  तो था आशा का , बड़ा हुआ हताश से
गिनते है रोज़ सुख-शूल, फूलों  की ओट से