प्राकृतिक छटा ( पहाड़ों की)
यह हसीन वादियाँ, यह दिलकश नज़ारे
कोई कैसे इनको रखे ,कोई कैसे भुला दे
नभांचल पर फैली फिरोजी घटाएं
मन: पटल पर अंकित अनुपम छटाएं
गगन चुम्भी चोटियाँ ,यह पर्वत मालाएं
वह बहते हुए दरिया वह मंजुल लताएँ
बिखरी सुनहरी अथाह हिम राशियाँ
हरियाली में डूबी वो गहरी घाटियाँ
वह वक्र चक्र सड़कें, सर्पीली सुरंगे
झरनों से झरती सतरंगी तरंगे
वह लम्बे तरु देवदार के चहुँ ओर
मिलने को आतुर धरा नभ के छोर
निराकार निर्मल आनंद का आभास
अचंभित हुआ जाता मन का विश्वास
जहां कल्पना भी ले नव आकार
जहां ज्ञान को भी मिले इक प्रकार
विधाता से पाया अनोखा उपहार
रचा खुद उसने बन कर चित्रकार