वजूद
दम तोड़ देती है तुमसे मिलने की हर ख्वाहिश
सुना है अब आरज़ू की इक अदद पहचान हूँ मैं
बेखुदी में आकर गुज़र जाता हूँ चाहत ही हद से
सुना है वफ़ा के कायदों से बहुत अनजान हूँ मैं
मेरा साया तुम को छू कर भी ना गुज़रे कभी
सुना है शहर के लोगों में बहुत बदनाम हूँ मैं
तन्हा पाओ कभी अपने को तो यह मान लेना
शब्-ए-वस्ल में उभरी हुई इक मुस्कान हूँ मैं