सोमवार, 24 जनवरी 2011

Dil ek parinda

दिल एक परिंदा

यह सच है कि दिल की गहराई को
कोई  नाप नहीं सकता
लब है कि हमेशा मुस्कुराते  ही रहे
कितना दर्द छुपा है इस दिल में
कोई भांप नहीं सकता
जलते  ही रहे जखम जो मुझ को मिले थे
उन जख्मो से उठे धुएं को
कोई रोक  नहीं सकता
ना दो तुम बुझते हुए शोलों को और हवा
इक आग वो  भड़के गी जिसे
कोई बुझा  नहीं सकता
किश्तियाँ यूं ही किनारों पे खड़ी रह जायेंगी
दिल का कोई भी दरिया अब उनको
पार लगा नहीं सकता
ना करो तुम भी तम्मना अब
इस दिल को यूं छूने की
तन्हाई के पिंजरे में कैद
कमबख्त ऐसा परिंदा है
जिसे कोई भी हमदर्द
बेकैद   करा नहीं सकता