मंगलवार, 11 जनवरी 2011

Ram namaami namaami namaami

राम नमामि नमामि नमामि

जब सारी दुनिया सोती है तो एक मुसाफिर जगता है
अम्बर में लटके ध्रुव तारे सा वह मार्ग इंगित करता है
हुए दिशाहीन जो पथ-भ्रष्ट उन्हें  पथ प्रदर्शित करता है
गहन तिमिर का दीपक बन कर  पथ आलोकित करता है
वह ध्यान बिंदु सा केन्द्रित हो  जग का संचालन करता है
वह गौड़ दिगंबर पूर्ण तत्व इस जग का पालन करता है
वह जीवन मृत्यु का दाता वह जड़ चेतन का अविनाशी
वह त्रिभुवन सुख का परिचायक पूर्ण समपर्ण का प्रत्याशी
पा जाने को एक झलक मन हो जाता है अति आतुर
हो श्वास सुवासित जहां भय मन का हो जाए काफूर
वह सुंदर श्याम मनोहर मंजुल वह  देव ऋषि सा सतकामी
वह कोमलांग वह वज्र समान , राम नमामि नमामि नमामि