रविवार, 16 जनवरी 2011

Ham-Safar

हमसफ़र

उसके तस्सुवर में गुज़र जाती है शामो सहर
कैसे दिन बीता ,कब रात ढली ,कुछ याद नहीं
संग उसके यूं कट जाता है कड़ी धूप का सफ़र
कैसे लब हँसे,कब आँख डबडबाई ,कुछ याद नहीं
जाने कैसे सिमट कर रह जाती है  लम्बी डगर
कैसे  वह संभली ,कब लडखडाई .कुछ याद नहीं
पल पल रफ्ता गुज़र जाती है यूं लम्बी उम्र
कैसे युग बीता, रूह बेकैद हुई ,कुछ याद नहीं