शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

gole ruppiya ghoome pahiya

गोल रूप्पिया घूमे  पहिया

आसमान से टूटा तारा,    धरती पर टकराया
घूमे गाँव शहर बस्ती  में, भरमाया भरमाया
क्यों धरती के लोग खफा हैं , भेद समझ नहीं पाया
सारे मानव एक से दिखते, हाव-भाव भी मिलते जुलते
फिर क्यों फिरते जुदा जुदा , बात समझ नहीं पाया
हुआ अचंभित देख कर बचपन ,अलसाया सकुचाया
कुह्म्लाया है यौवन है फिरता अकुलाया अकुलाया
देख बुढापा पीड़ित होता , किसने इसे रूलाया
मौन निरुतर विस्मित तारा, थक कर हिम्मत हारा
ढूंढे अपने शब्द कोष में , जीवन तत्व बेचारा
एक चमक से टूटा  तंत्र  ,चौंक कर पूछा क्या है मंत्र
मैं हूँ सिक्का खूब चमकता ,सब जेबों से रोज़  फिसलता
एक के पीछे हर कोई  दौड़े अपनी अपनी मंजिल छोड़े
गोले रूप्यिया,घूमे पहिया जिसने सब को नाच नचाया