कृषक की तक़दीर
बयाँ चाहे कुछ भी हो मगर यह तो बिलकुल साफ़ है
देश में पोषण करने वालो की तक़दीर कितनी बेज़ार है
सत्ता लोलुप सिर्फ बात बनाते है
जन जीवन सो कोसों दूर
ऑफिस में बैठ बस ठंडी हवा खातें हैं
योजनायें बनती है रोज़, ओर दफ़न हो जाती है
दफ्तर की सारी फाईलें रद्दी के भाव बिक जाती हैं
यां फिर स्टोर रूम में भोजन है मूषक का
सच बात करते हो, यहाँ वृथा जीवन है कृषक का