झील किनारे
जीवन की भागदौड़ से जब भी उकता जाता हूँ मैं
भीड़ में जब भी खुद को समझ नहीं पाता हूँ मैं
बीता कल और आने वाले कल का फर्क कर पाऊ मैं
तन्हा झील किनारे बैठ हर पल को दोहराता हूँ मैं
झील का ठहरा पानी देता जीवन इस में ठहराव
परिधि में सिमटा करता इंगित सब उतार चढ़ाव
जितना डूबो उतना गहरा छोर पकड़ नहीं पाता हूँ मैं
तन्हा झील किनारे बैठ हर पल में डूबा जाता हूँ मैं
शंकित होता है मन क्या जीवन भी है झील के जैसा
खोज रहा अस्तित्व कि जैसे पानी के निर्मल स्त्रोत का
जितना सोचूँ उतना विचलित पल प्रतिपल हो जाता हो मैं
तन्हा झील किनारे बैठ हर स्त्रोत पकड़ता जाता हूँ मैं
जीवन की भागदौड़ से जब भी उकता जाता हूँ मैं
भीड़ में जब भी खुद को समझ नहीं पाता हूँ मैं
बीता कल और आने वाले कल का फर्क कर पाऊ मैं
तन्हा झील किनारे बैठ हर पल को दोहराता हूँ मैं
झील का ठहरा पानी देता जीवन इस में ठहराव
परिधि में सिमटा करता इंगित सब उतार चढ़ाव
जितना डूबो उतना गहरा छोर पकड़ नहीं पाता हूँ मैं
तन्हा झील किनारे बैठ हर पल में डूबा जाता हूँ मैं
शंकित होता है मन क्या जीवन भी है झील के जैसा
खोज रहा अस्तित्व कि जैसे पानी के निर्मल स्त्रोत का
जितना सोचूँ उतना विचलित पल प्रतिपल हो जाता हो मैं
तन्हा झील किनारे बैठ हर स्त्रोत पकड़ता जाता हूँ मैं