शनिवार, 22 जनवरी 2011

bhrashtachaar ....doshi kaun

भ्रष्टाचार.... दोषी कौन ?

इक दफ्तर में मैं हूँ अफसर  और दूजे में हूँ जनता आम
इक  दफ्तर में हूँ मैं भ्रष्ट और दूजे में  मैं हूँ परेशान
यह कैसा  दोहरा खेल , यह कैसा संज्ञान  ?
कभी कहलाऊँ  चोर, और कभी बन जाऊ अनजान
पहले पल ठगता  दूजो को 
खुद ठग जाता अगले पल मैं
पहले पल मैं चोरी करता
पल अगले दर्ज  रपट   कराता
खुद को देखूं और दूजो को समझू
खुद को मानू  और दूजो को पहचानू
मैं तुम और आप   भ्रष्ट सभी है
फिर क्या है यह बात
दोषी तुम हो ,मैं  सच्चा हूँ
ऐसी क्यों है बात ?
जनता मैं और सरकार  भी मैं  हूँ
व्यवस्था का भ्रष्टाचार भी मैं हूँ
जिस दिन बद्लूगा  अपने को
होगा तब तिलस्मात  !!!!!!!!