शायद तुम आये हो
शाख पर कोंपल फूटी नई
सोचा शायद तुम आये हो
मंद बही पुरवाई कहीं
सोचा शायद तुम आये हो
धड़का दिल मैं, चुपचाप रही
सोचा शायद तुम आये हो
थिरका पग नस में चुभन हुई
सोचा शायद तुम आये हो
झांक रहा सुधियों का अम्बर
बाट देखता जर्रा-जर्रा
सोते जगते आठों प्रहर
लगता है जैसे तुम आये हो
शाख पर कोंपल फूटी नई
सोचा शायद तुम आये हो
मंद बही पुरवाई कहीं
सोचा शायद तुम आये हो
धड़का दिल मैं, चुपचाप रही
सोचा शायद तुम आये हो
थिरका पग नस में चुभन हुई
सोचा शायद तुम आये हो
झांक रहा सुधियों का अम्बर
बाट देखता जर्रा-जर्रा
सोते जगते आठों प्रहर
लगता है जैसे तुम आये हो