मंगलवार, 4 जनवरी 2011

sankuchit yaad

संकुचित याद

बहुत याद करने पर भी ना जब आया याद  वो
सोचा, छोड़ो शायद इक  अजनबी सा  था वो
अच्छा ही हुआ चलो भूल सा गया  वो
याद आता भी भी तो ना तड़पाता जी को
हमसाया बन कर मेरा जब साथ मेरे चला वो
याद बन कर एक  अपना, बहुत याद आया वो
आता जब भी  इक पवन की तरह
यादो की बगिया महका जाता वो
सोचते है याद भी कितनी संकुचित है
चुनती है उसको जो बहला  जाता है जी को