आत्म- विश्वास
किस दौर से गुज़रा हूँ
किस दौर में जाना है
आशंकित उदासी से
घिरा आज जमाना है
चुपचाप हटाता हूँ वह जो
वक्त पे दीमक है
इतिहास के पन्नो पर
बस मेरा ही फसाना है
पायोगे मुझे हर जर्रा जो
नज़र मेरी सी पायोगे
जी जाओ गे हर लम्हा
जो धुन मेरी ही गाओगे
कर जाओगे तुम पार
समुदर यह रिचायों का
हर उठती हुई ऋचा पर
जो श्रुति मेरी लगाओ गे
कब, किस वक़्त क्या हो जाए !
इस का अनुमान नहीं है
भरोसों पर ही जिन्दा हूँ
इस का गुमान नहीं है
टिक जाते है धरती पर जब मेरे कदम
बढ़ कर जो ना छू लू
ऐसा आसमान नहीं है