चिंगारी
चिंगारी
एक ख्वाब था नयनो में
जिसे दिल ने तराशा था
एक सांझ उतरती थी
जिसे दिन ने संभाला था
जीवन के फलसफो पर
हज़ारो ही फ़साने थे
श्वासों की वीणा पर
बस तेरा ही तराना था
बैठे रहे ओंठो पर
बन कर एक तब्बस्सुम
राख हुई जाती थी शमा
बस जलता परवाना था
यादों के धुध्लकों में
दबी थी वह चिंगारी
भूडोल उठा सागर में
झुलसा यह जमाना था
खो जाना ना " नीरज"
इन ज्वाल तरंगो में
रूकने को नहीं वो बस
कुछ और ठिकाना था