गुरुवार, 9 अगस्त 2012

चिंगारी

चिंगारी
चिंगारी
एक ख्वाब था नयनो में
जिसे  दिल ने तराशा था
एक सांझ उतरती थी
जिसे दिन ने संभाला था
जीवन के फलसफो पर
हज़ारो ही   फ़साने थे
श्वासों की  वीणा पर
बस तेरा ही  तराना था
 बैठे रहे ओंठो पर 
बन कर एक   तब्बस्सुम
राख हुई जाती थी  शमा
बस जलता परवाना था
यादों के धुध्लकों में
दबी  थी वह चिंगारी
भूडोल उठा सागर में
झुलसा यह  जमाना था
खो जाना ना " नीरज"   
इन ज्वाल तरंगो में 
रूकने को नहीं वो बस 
कुछ और  ठिकाना था