चाँद
यह चाँद चमक कर बोल रहा
बातें मन की सब खोल रहा
बात हुई जब गैरों की
आँखों से आंसू सूख गये
अपनों का राग छिड़ा जब कल
दरिया कितने ही उमड़ गये
क्या स्वार्थी मन की बात करूं
अपनों का दर्द तो मेरा है
दूसरों के दुःख की चिंता हो क्यों
वह तो जीवन का फेरा है
वाह रे ! ओ दयालू मानव
चला जीवन रहस्य को अपनाने
जीत ना पाया मन को इस धरती पर
चला चाँद पर विजय पताका फहराने