शनिवार, 14 सितंबर 2013

वक्त

वक्त
वक्त बहता  ही रहा
 सरहदों को पार करता
बेसबब इतिहास गढ़ता
अनगिनत सुर्ख़ियों पर
बेजुबां  परिहास करता
वक्त बहता ही रहा

पकड़ने की कोशिशें
सब धूल में मिलती रही
अपनी ही नाकामियां
पर मुखर होती रही
कर के सिजदा वक्त का
जुल्म   यूं सहता रहा
वक्त बहता ही रहा

निष्फल नहीं होते प्रयतन
मंत्र यह बस साथ था
मुश्किलों के दौर में भी
साथ मेरा हाथ था
छू ही लूँगा अब तो मंजिल
पग निरंतर धरता  रहा
वक्त बहता ही रहा

चीर कर सीना वदन का
हर कदम आगे बढेगा
यह कभी रूकता नहीं है 
वक्त के संग दम बहेगा
ले संबल संकल्प  का
कर्म बस करता रहा
वक्त बहता ही रहा






 मेरी छाया

बहुत बड़ी है मेरी छाया
मुझसे पहले यह उठ जाती
मुझ से आँख बचा कर
सब से पहले यह आ जाती
 
बहुत अच्छा लगा तेरा यूं  कुछ छोड़ कर जाना 
वो आगे बढ़ना फिर  पीछे देख कर   मुस्कुराना 
बढ़ जाता है हर कोई छोड़ कुछ निशाँ कदमो के  
उड़े जो धूल तो दूर क्षितिज में रंग बिखर जाना