Srijan
शनिवार, 14 सितंबर 2013
बहुत अच्छा लगा तेरा यूं कुछ छोड़ कर जाना
वो आगे बढ़ना फिर पीछे देख कर मुस्कुराना
बढ़ जाता है हर कोई छोड़ कुछ निशाँ कदमो के
उड़े जो धूल तो दूर क्षितिज में रंग बिखर जाना
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