दिल का दर्द पन्नो पे उतारूँ कैसे
एक आंसू है उसे हर्फ़ बनाऊ कैसे
जलजले उठते है हज़ारों दिल में
हर जलजले को एक मोड दिखाऊँ कैसे
उजड़ा है चमन नीड़ बनाऊँ कैसे
हर तरफ शूल ,गुल को खिलाऊँ कैसे
रौशनी दूर चिरागों से जो आती थी कभी
बुझ रही शमा , बचाऊँ कैसे
हो गए मद्धम ,बुलंद इरादों के स्वर
हो गए फीके रंग जो होते थे अजर
बस अब एक तमन्ना बाकी यारो
स्वप्पन हुए ख़ाक फिर से सवारूँ कैसे
उठते हैं जो गिर कर ,मज़बूत कदम है
हँसते है जो गम पा के भी ,उनमे दम है
देते है हवा सब को जो ,बनके पैगम्बर
सम्राट मुक़द्दर के ,बेताज वो हम है.