रविवार, 29 मार्च 2015


अपनों ने  छोड़ा
नहीं कभी साथ 
पर जो छोड़ गया साथ। ……
वो कभी अपना
हुआ ही नहीं 


शनिवार, 7 मार्च 2015

महिला दिवस

महिला दिवस


एक इन्सान है हम
सख्त जान है हम
न बांधो शक्ति को
दान दे कर एक दिन का
हर एक दिन को
सशक्त बनाती है हम

न होती गर नारी
न बनता परिवार
न होती गर शक्ति
असंभव  शिव अवतार

मिट जाये धरा गर तो
रोता यह आकाश
तोड़ो भ्रम को कि
यह महिला दिवस है
यह मान लो कि
हर दिन ही बस
महिला का दिवस है

धन्य है वो देश,
वो विश्व ,वो समाज
जहा हर जान सुरक्षित
पूज्य ,गर्वित और करे नाज़





स्वप्पन हुए ख़ाक फिर से सवारूँ कैसे



दिल का दर्द पन्नो पे उतारूँ  कैसे
एक आंसू है उसे हर्फ़   बनाऊ कैसे
जलजले उठते है हज़ारों  दिल में 
हर जलजले को एक मोड दिखाऊँ कैसे

उजड़ा है चमन नीड़ बनाऊँ कैसे
हर तरफ शूल ,गुल को खिलाऊँ  कैसे
रौशनी दूर  चिरागों से जो आती थी कभी
बुझ रही  शमा  , बचाऊँ कैसे

हो गए मद्धम ,बुलंद  इरादों के स्वर
हो गए फीके रंग जो होते  थे अजर
बस अब एक   तमन्ना  बाकी  यारो
स्वप्पन हुए ख़ाक फिर से  सवारूँ कैसे

उठते हैं जो गिर कर ,मज़बूत कदम है
हँसते है जो गम पा  के भी  ,उनमे दम है
देते है हवा  सब को जो ,बनके  पैगम्बर
सम्राट मुक़द्दर  के ,बेताज वो हम है.



















शुभ ,अशुभ

शुभ ,अशुभ



शुभ ,अशुभ का भेद क्या जानो
शुभ है  जो मैं देख रहा हूँ
अशुभ जो मैं  बस सोच रहा हूँ
घटना कुछ भी घट जाती है
चिन्ह बस अपने दे जाती है
उसको अब चाहे जो  समझो




मित्रता की नीँव क्या ?

मित्रता की नीँव  क्या ? 

वैचा रिक मतभेद या वैचारिक समानता 

प्रशन जितना सरल है। उत्तर उतना ही कठिन
उत्तर अगर सहज है। तो प्रभाव उतना ही असहज 
क्या इन्सान की परिपक्वता भी कोई मायने रखती है 
इस तरह तो क्या मित्र का मूल्यांकन भी बदलता रहे गा ?