गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

रोको मत ,जाने दो 
और 
रोको ,मत जाने दो 

ऊपर लिखे दो वाक्य बिलकुल हुबहू लेकिन कहने का अंदाज़ अलग ............सारा अर्थ ही बदल कर रख दिया .
मित्रों ! हम यही अपने जीवन में भी करते हैं ......बात को अपने अंदाज़ में कह  जाते है बिना कोई ख़ास ध्यान रखे ..और फिर होता है अर्थ से अनर्थ की  यात्रा का आरम्भ ...................