विजय गान
कब जाना कल ढल जाएगा
जीवन पल में छल जाएगा
व्यर्थ रहा गर यह पल प्रतिपल
समिधाओं में जल जाएगा
आयों सम्बल और सजा दें
दुविधाओं का मूल्य गिरा दे
संशय सारे होंगे धूमिल
श्रम से तप का दीप जला दें
शूल फूल का रहे समंवय
प्राचीरों से झरे पराजय
उन्नत नभ की मीनारों से
विजय गान उद्घोष सुना दे