रविवार, 3 जून 2012

लौट आओ

लौट आओ
 
भ्रमित किया था हर आहट ने
शंकित करती हर पदचाप
यादों की  धारा में बहती
उद्वेलित हो  सुनती प्रलाप
भाव विह्ल दिल के गलियारे
जल से पूरित हुये दृग कूप
 गहराते जाते अंधियारे 
विकट हुआ प्राकृत रूप
कब आये और कब चल दोगे
वक्त को बाँध ना पाया मैं
पाया था जो रफ्ता रफ्ता
खो कर जांच ना पाया मैं
जीवित रखने को जिन्दापन
श्वास भरू यादों का  तन में 
 चिर निद्रा में  लीन हुआ तो
कब्र भाव की खोदूं मन में
 आओ पुनह लौट कर आओ
वक्त तुम्हे ना जाने देगा 
कतरा कतरा रूप तुम्हारा 
अपनी झोली में भर लेगा