लौट आओ
भ्रमित किया था हर आहट ने
शंकित करती हर पदचाप
यादों की धारा में बहती
उद्वेलित हो सुनती प्रलाप
भाव विह्ल दिल के गलियारे
जल से पूरित हुये दृग कूप
गहराते जाते अंधियारे
विकट हुआ प्राकृत रूप
कब आये और कब चल दोगे
वक्त को बाँध ना पाया मैं
पाया था जो रफ्ता रफ्ता
खो कर जांच ना पाया मैं
जीवित रखने को जिन्दापन
श्वास भरू यादों का तन में
चिर निद्रा में लीन हुआ तो
कब्र भाव की खोदूं मन में
आओ पुनह लौट कर आओ
वक्त तुम्हे ना जाने देगा
कतरा कतरा रूप तुम्हारा
अपनी झोली में भर लेगा