मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

Aasha

आशा
करता हूँ  अनुरोध यह तुमसे
मत करो पुन्य पाप का लेखा
जीवन के इस जल तरंग में
ना जाने कितने गीत  और बजने  है
चलते चलते यूं रूक जाता
गिरता जो तो संभल नहीं पाता
रज कण  से लिपट नहीं पाता
धूलि ना मस्तक पर धर पाता
करता हूँ अनुरोध यह तुमसे
मत करो हार जीत का विवरण
जीवन  के इस उतार चढाव में
ना जाने कितने जीत और सजने है

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

उनवान

शीर्षक अभिव्यक्ति- २७ - उन्वान "को लेकर लिखी गयी यह पंक्तियाँ

क्या जानू क्या है उनवान
भाव गीत और छंद बने जब
कठिन उच्चारक ब्यान
क्या जानू क्या है उनवान
मन में अगनित भाव है पलते
द्रवित हुये शब्दों में ढलते
सारे नियमों से अज्ञान
क्या जानू क्या है उनवान  
मन में उमंग तरंगित होती
आशा की जिह्वा से बोती
शब्दों के अंकुर अनजान
क्या जानू क्या है उनवान
लेखन स्वत लेख लिख जाता
दीबाचा की रस्म ना होती
नव कल्पना भरे उड़ान
क्या जानू क्या है उनवान

सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

नमन ( श्री लाल बहादुर शास्रती जी के जन्म दिवस पर )

नमन ( श्री लाल बहादुर शास्रती जी के जन्म दिवस पर )

करूं कोटि नमन
अर्पित सुमन
और वचन भरू
यही बारम्बार
श्रध्ये तुम
महानायक तुम
अनुसरण तुम्हारा
करूं   जीवन भर 
हे  युग पुरुष
हे नर पुंगव
कोटि नमन
शत कोटि नमन

सदा सुहागिन धरती

सदा सुहागिन धरती

उतरा है लो चाँद धरा पर
पर  गुमसुम ,कितना खामोश
स्पंदन हीन हुआ था भावुक
बस   आँखों से उगले आक्रोश
रहती क्यों चुपचाप धरा
क्यों करती है यह विषपान
द्रवित हृदय पर क्षमा बांटती
सह  कर भी कितना अपमान
अनबुझ एक पहेली मानो
इसके भीतर सच पहचानो
सप्त ऋषि की एक कल्पना
संग सभी पर तन्हा  जानो
चंदा डोले वन -उपवन में
हर वीथी और हर सरहद में
बन ज्ञान की अमर वर्तिका
सन्देश फैलाए जगतीतल में
फिर धानी चूनर पहना दो
फिर सोलह सिंगार सजा दो
बेवा होती इस धरनी को
दुल्हन का  स्वरुप बना दो 
प्यार जताती मेरी धरती
सर्वस्व लुटाती मेरी धरती
नष्ट करो मत प्राकृत इसका
सदा सुहागिन मेरी धरती