एहसास
केवल एहसास ही तो है जो जिन्दा रहता है ,अपर्वर्तनीये ...और कुछ खो कर पाने की प्रबल इच्छा को जागृत करता है .
दो साल पहले अचानक एक दुर्घटना ने जीने के मायने बदल दिए . जीने का ढंग बदल गया . परिवर्तन कुछ इस तरह हुआ की सोच भी नहीं पाए कि समझौता करना है या स्वीकार .
लेकिन एहसास था की कुछ मानने को तैयार नहीं था . संघर्ष किया और आज पुन्ह जब उगते सूरज के साथ आँखे खोली तो पाया कि एहसास ने फिर विजय पायी और पुन्ह जीवन को जीवंत कर दिया .
बात बहुत छोटी सी है . खेल के मैदान में पैर मुढ जाने से घुटना क्षति ग्रस्त हुया. इलाज़ चलता रहा लकिन बार बार वाही चोट लगने के कारण चलने फिरने में रूकावट बढ़ गयी .छोटा सा ऑपरेशन भी हो गया .लेकिन अब ऐसे लगने लगा था की शायद अब कभी जीवन में वो बात न आ पाए . दौड़ना भागना तो दूर , चलना भो दूभर लगने लगा . चार महीने पहले बचों को चुनौती दी की गर्मी के छुट्टी में में खेल के मैदान में मिलेंगे और मैच खेलेंगे (बास्केट बाल ) बस जैसे अपने आप से लड़ कर रोज़ अभ्यास करने लगी .एक एक कदम उठाना कितना पीड़ा जनक था हिम्मत भी टूट जाती थी कभी कभी ..लकिन एहसास था के एक दिन जीतना है
और आज बचों के साथ मैच खेलने के लिए तैयार थॆ. आज यह महसूस हुआ की जो दर्द कभी मेरे जीवन का हिस्सा बन्ने जा रहा था वः सिर्फ घुटने के एक कोने में ही सिमट कर रह गया .
और में उन्मुक्त और पुन्ह एक उत्साहित जीवन की अधिकारिणी बन चुकी थी .