शनिवार, 22 जून 2013

जल प्लावन

जल प्लावन

इतना खौफनाक मंजर . जल निमग्न धरती ....टूटते पहाड़ .............लुद्कते पत्थर .....धंसती जमीन .....
जो जिंदगियां ख़तम हो गयी ..उनका खोने का गम और जो जीवन को पागए  उनका जीवन के लिए संघर्ष .......
उफ! प्रकृति भी मानव के स्वार्थीपन से निष्ठुर हो गयी 
कब संभले गा .......कब ...कब ...आखिर कब ......


 मौन तुम
मौन हम
मौन यह धरा, गगन
चक्र यह विनाश का
 कितना सरल
कितना  सघन
त्राहिमाम त्राहिमाम
थाम  ले जरा लगाम
कंकरों  की ठोकरों  से
ध्वस्त  आज
जन विहान
सरल रेख हुयी  वक्र
 चक्र अब हुआ कुचक्र
भावनाएँ  चूर हुयी
श्वास गया बिखर बिखर 
ऐ! जरा इंसान जाग
बदल अपनी रेख भाग
मत नष्ट कर वसुंधरा
क्षिति जल पवन
गगन और आग
 तड़प उठी पुकार अब
मच गयी गुहार सब
छोड़ गर्व और गुमान
प्रकृति को कर झुक सलाम