शनिवार, 22 जून 2013

जगत नियंता

जगत नियंता
धरा की बेबसी
 दृगों की व्याकुलता
मन की अकुलाहट
  तन की शिथलता
इन सब अनभिज्ञ
अपने अस्तित्व के
वर्चस्व को
स्थापित करने में
सलंग्न है
और प्रकृति
का क्रोध है
चरम सीमा पर
द्वंद्व में पिस रहा है
जगत !!!!!