जगत नियंता
धरा की बेबसी
दृगों की व्याकुलता
मन की अकुलाहट
तन की शिथलता
इन सब अनभिज्ञ
अपने अस्तित्व के
वर्चस्व को
स्थापित करने में
सलंग्न है
और प्रकृति
का क्रोध है
चरम सीमा पर
द्वंद्व में पिस रहा है
जगत !!!!!
धरा की बेबसी
दृगों की व्याकुलता
मन की अकुलाहट
तन की शिथलता
इन सब अनभिज्ञ
अपने अस्तित्व के
वर्चस्व को
स्थापित करने में
सलंग्न है
और प्रकृति
का क्रोध है
चरम सीमा पर
द्वंद्व में पिस रहा है
जगत !!!!!