परिवर्तन
प्रकृति परिवर्तन शील है। सब कुछ एक नियमित धारा प्रवाह के साथ साथ बदलता रहता है। ऋतुएं ,वातावरण , भूगोल ,वायुमण्डल, । और तो और परिवर्तन तो सौर मंडल में भी होता रहता है। आंतिरक एवं बाहरी परिवर्तनों से घिरा प्राणी जगत भी इन परिवर्तान से अछूता नहीं है।
प्राणियों में होने वाले शारीरिक ,मानसिक,आत्मिक,आद्यत्मिक परिवर्तन भी काल चक्र के साथ गतिशील हैं
परिवर्तन एक सुनिश्तित ,अकाट्य तथ्य है। जिसकी अवमानना ,अवज्ञा ,अवहेलना कोई भी नहीं करता।
इसे जितनी सहजता से स्वीकारा जाए , यह परिवर्तन निशित रूप से सकारात्मक ऊर्जा का स्त्रोत बन जाता है
और विपरीत हो तो यह नकारात्मक ऊर्जा का एक ऐसा प्रवाह बन जाता है जो विनाश की साक्षात् प्रतिमूर्ति बन जाता है
आइए ! इस होने वाले पल प्रतिपल के परिवर्तन को स्वीकार करे , उसका अंगीकार करे. अनुभव करें एवं अपने आप को तैयार करे..
परिवर्तन शील जीवन को तथस्ट करने के लिए स्वयं को भी परिवर्तित करे
प्रकृति परिवर्तन शील है। सब कुछ एक नियमित धारा प्रवाह के साथ साथ बदलता रहता है। ऋतुएं ,वातावरण , भूगोल ,वायुमण्डल, । और तो और परिवर्तन तो सौर मंडल में भी होता रहता है। आंतिरक एवं बाहरी परिवर्तनों से घिरा प्राणी जगत भी इन परिवर्तान से अछूता नहीं है।
प्राणियों में होने वाले शारीरिक ,मानसिक,आत्मिक,आद्यत्मिक परिवर्तन भी काल चक्र के साथ गतिशील हैं
परिवर्तन एक सुनिश्तित ,अकाट्य तथ्य है। जिसकी अवमानना ,अवज्ञा ,अवहेलना कोई भी नहीं करता।
इसे जितनी सहजता से स्वीकारा जाए , यह परिवर्तन निशित रूप से सकारात्मक ऊर्जा का स्त्रोत बन जाता है
और विपरीत हो तो यह नकारात्मक ऊर्जा का एक ऐसा प्रवाह बन जाता है जो विनाश की साक्षात् प्रतिमूर्ति बन जाता है
आइए ! इस होने वाले पल प्रतिपल के परिवर्तन को स्वीकार करे , उसका अंगीकार करे. अनुभव करें एवं अपने आप को तैयार करे..
परिवर्तन शील जीवन को तथस्ट करने के लिए स्वयं को भी परिवर्तित करे