अन्तरात्मा
अब यह प्रश्न
नहीं पूछती
मैं कौन हूँ
बड़े शोख से
कहती हैं
तुम कौन हो
कोरे भ्रम ने सब
कैसे छकाएं हैं
अस्तित्व के चक्कर में
सभी भरमाये हैं
भूल गए भेद सब
अपने पराये का
पराये तो पराये रहे
अब अपने भी
पराए हैं
कैसा असमंजस है
कैसा छलावा है
प्रेम का ज्वालामुखी
ठंडा हुआ लावा है