बुधवार, 15 जून 2016

अन्तरात्मा



अन्तरात्मा 

अब यह प्रश्न 
नहीं पूछती 
 मैं कौन हूँ 

 बड़े शोख से 
कहती हैं 
 तुम कौन हो 

कोरे भ्रम ने सब 
कैसे छकाएं हैं 
अस्तित्व के चक्कर में 
सभी भरमाये हैं 

भूल गए भेद सब 
अपने पराये का 
पराये तो पराये रहे 
अब अपने भी 
पराए  हैं 

कैसा असमंजस है 
कैसा  छलावा है 
 प्रेम का ज्वालामुखी  
ठंडा हुआ   लावा है