मेरे अपने
बस एक तुम थे
अपने
छोड़ आया था
तुम को जिस मोड़ पर
आज भी वही हो
बिलकुल जैसे सपने
न कोई रस्म
न कोई रिवायत
जैसे बस अपनों
की एक इबादत
भीड़ का सैलाब
छोड़ गया साथ
मिले कई नए
खो गए पुराने
रहे तुम तठस्थ
मेरे सिरहाने !!!!!!!!!!!!
रच दिए गीत अनगिन
ऋतु के मुहानो ने
अविचल काल चक्र
था घूमता जहानों में
विकल मन भटकता था
खोजता पाषाणों में
हीरे की चाहत
ले गई कई खदानों में
तुम ! केवल तुम थे
दिए जैसे तम में
टिमटिमाते ही रहे
रहे तुम तठस्थमेरे सिरहाने!!!!!!!!!!!!!!!!