सोमवार, 24 सितंबर 2012

वापसी

वापसी 


वक्त की बुनियाद पर थी
चाहतों की वापसी 
जलजले बढ़ते रहे 
थी हादसों की वापसी 
तुम ना चाहते तो भी 
तूफ़ान यह आना ही था 
बढ़ते दरिया के कदम और 
लहरों की थी वापसी 
बाँध कौन पाया है मन को 
बनते बिगड़ते भाव को
सत्य के आलोक में भी
कल्पना की वापसी
लम्हा लम्हा जी उठा था
याद के धुंधलकों में
चिर पुरातन मौन था
और नव ध्वनि की वापसी