रविवार, 30 सितंबर 2012

"चलो कही दूर चलते है "

"चलो कही दूर चलते है "

चलो चले  कहीं बहुत दूर
नदिया के पार
तारो की छाँव
पर्वत की तलहटी पर
एक छोटा सा गाँव 
ना भूख लगे ,ना प्यास जगे
बस अपने मन से मन लगे
चलो चले कही बहुत दूर

 मन के मीठे बोल
बोलें ,बिना किसी तोल-मोल
जहा  बेखटक रात ना जाए
बिन बुलाये दिन ना आये
तारे दामन में भर लें
जुगनू नीले नभ पर छायें
चलो चले कही बहुत दूर