थका हुआ आक्रोश
अब मन में
आक्रोश नहीं ! केवल निराशा है
आकाश ने पृथिवी को
न जाने कितनी बार रोंदा है
हुआ क्या ?
पल दो पल का जिक्र
बाद की किस को फिक्र
बंजरता ताउम्र सिसकती है
नभ की पाशविकता
धरा का कोई और टुकड़ा
लपकती है !!!!!!
घिन आती है
इस निरर्थक आक्रोश पर
नपुंसक सांसदों के जोश पर
निराशा है ! केवल निराशा है
अपने इस वतन में अब
सुरक्षा की पिपासा है .......