बहुत उम्मीद है लेकिन
हाल हर बार यही होता है
उमीदवार हर बार रोता है
हर घटना जगती है आशा कोई
लेकिन वही बार बार होता है
नहीं बदल सकता कोई इसे अब
जड़ें गंदगी की बहुत ही गहरी हैं
मेरा ,मुझे क्या ,तेरा ,तुम्हारा
स्वार्थ के पानी से सींचे फल ज़हरी हैं