शनिवार, 29 दिसंबर 2012



बहुत उम्मीद है लेकिन 
हाल हर बार यही होता है 
उमीदवार हर बार  रोता है 
हर घटना जगती है आशा कोई 
लेकिन वही  बार बार होता है 
नहीं बदल सकता कोई इसे अब 
जड़ें गंदगी की बहुत ही गहरी हैं 
मेरा ,मुझे क्या ,तेरा ,तुम्हारा 
स्वार्थ के पानी से सींचे फल ज़हरी हैं