रविवार, 6 मई 2012

धुंधलके

धुंधलके
बात की बाट में बाँट लिया यह जीवन
अनकही बातों में धुंधला सा सवेरा है
प्रश्नों के बियावान में  क्यों चलता है दिनकर
पूरब है ना  पश्चिम है उत्तर हर दिशी है
गौर करेंगे तो ना पायेंगे गवाही भी
छाया भी कहीं ओझल छाया में छिपी है
सिमट गये सब लम्हे रजनी के स्याहों में
बातों के धुंधलके है  ना तेरा है ना मेरा है
अब  बात की बातों  में उठता है धुंआ यूं
दीपों की तपिश में भी चहूँ फैला अँधेरा है
फैली अथाह राशि ख्यालो के समुंदर में
सीपी से छिपी बात का भू तल पर ही डेरा है