रविवार, 6 मई 2012

तल्लीनता ?

तल्लीनता ?
पुकारते है सन्नाटे
हर दिन  की तरह
आज भी खामोशी से
निहारते है सन्नाटे
हर दिन की तरह
आज भी दूर से
फान्सलो  का संकरापन
विस्तृत हुआ जाता है
नियति का घटना क्रम
विस्मित हुआ जाता है
मुस्काता है ,रोता है
रोता है. मुस्काता है
हाथो से पकड़ने की
प्रक्रिया में असहज हो
दूर छिटक जाता है
पंख विहीन ही
अंत में  विलीन है
गूंजते सन्नाटो में
क्षुबधता तल्लीन है